जषुपर जिले में अनुसूचित जनजातियों में पारिवारिक स्तर की सुविधाएं एवं षिषु मत्र्यता दर: एक भौगोलिक अध्ययन

 

डाॅं. अनोज एक्का1, डाॅ. टिके सिंह2

1विभागाध्यक्ष, लोयोला महाविद्यालय, कुनकुरी जिला- जषपुर (00)

2सहायक प्राध्यापक, भूगोल अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर

ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू  ंदवरमाां1978/हउंपसण्बवउए कतजपामेपदही/हउंपसण्बवउ

 

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किसी क्षेत्र में षिषु मत्र्यता दर को सामान्यतया उच्च जीवन स्तर, चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धि, जन-सुविधाओं और वातारण, आदि का प्रतीक माना जाता है। अनुसूचित जनजातियों के पारम्परिक रुढ़िवादिता, सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं तथा जातिगत बंधनों के कारण इनमें पारिवारिक स्तर की सुविधाओं में कमी पाई गई है। मानव साभ्यता एंव संस्कृति से दूर वनाच्छादित एवं पिछड़े भागों में आवासित अनुसूचित जनजातियों के षिषु मत्र्यता दर को कम करने के लिए इनमें पारिवारिक स्तर की सुविधाओं में सुधार करना अत्यावष्यक है। जिले में अनुसूचित जनजातियों में शिशु मत्र्यता दर 80.5 प्रति हजार है। जिले में षिषु मत्र्यता दर बालकों में 90.1 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 62.6 प्रति हजार है। जिले में नवजात मत्र्यता दर 54.4 प्रति हजार है। इसमें से 22.8 प्रति हजार प्रारंभिक नवजात मत्र्यता दर है। नवजातोत्तर मत्र्यता दर 26.0 प्रति हजार है। जिले में प्रांरभिक नवजात मत्र्यता दर बालकों में 26.5 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 18.5 प्रति हजार कम है।

 

 

ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू मत्र्यता, नवजात, नवजातोत्तर, पारिवारिक।

 

 

 प्रस्तावना:

शिशु मत्र्यता दर से आशय जीवन के प्रथम वर्ष की मृत्यु से है। प्रथम वर्ष मंे होने वाली मृत्यु की संख्या आयु के अन्य वर्ष के अपेक्षा अधिक होती है, शिशु मत्र्यता दर कहलाती है। शिशु मत्र्यता दर एक अत्यंत संवेदनशील सूचक है, जो एक देष की स्वस्थ्य की दशाओं की ओर संकेत करता है। जिस देष में शिशु मत्र्यता दर जितनी कम होगी, उस देष की जीवन स्तर और लोगों के स्वस्थ्य का स्तर उतना ही उच्च होगी। षिषु मत्र्यता के निर्धारक कारक एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा समय के साथ परिवर्तनषील है। अलग-अलग स्थानों के सामाजिक-आर्थिक विकास, जनसुविधाएँ तथा वातावरण भिन्न-भिन्न स्तर के होते है। षिषु मत्र्यता दर निर्धारण करने के बहुत से कारक हैं, जिनमें जनसुविधाएँ एवं वातावरण महत्वपूर्ण कारक हैं। वातावरण एवं जन सुविधाओं का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव वहाँ जन्म लेने वाले षिषु पर भी पड़ता है।

 

अध्ययन उदद्ेश्य:

प्रस्तुत अध्ययन का उददेश्य जशपुर जिले में अनुसूचित जनजातियों में शिशु मत्र्यता का आंकलन एवं अनुसूचित जनजातियों में पारिवारिक स्तर की सुविधाएं एवं शिशु मत्यर्ता की व्याख्या करना है।   

 

अध्ययन क्षेत्र:

यह शोध पत्र छत्तीसगढ़ के उत्तर - पूर्वी भाग में स्थित जषपुर जिले (अक्षांषीय विस्तार 22016’38’’ से 23015’ उत्तरी अक्षांश तथा 83023’36’’ से 8408’43’’ पूर्वी देशांतर मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 6,088 वर्ग किलोमीटर तथा कुल जनसंख्या 6,56,352 है।) में शिशु मत्र्यता से संबंधित है। जिले की कुल जनसंख्या का 7.2 प्रतिषत अनुसूचित जाति एवं 65.4 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है।

 

आंकड़ों के स्रोत एवं विधि तंत्र:

प्रस्तुत शोध पत्र का अध्ययन प्राथमिक आंकड़ों पर आधारित है। इस अध्ययन हेतु जिले के 8 विकासखंडों में से प्रत्येक से पांच गांव का चयन प्रतिचयन यादृच्छित विधि द्वारा किया गया है। ग्रामों का सर्वेक्षण कार्य 2006 में की गई है। गांवों के केवल उन्हीं अनुसूचित जनजाति महिलाओं से सूचना एकत्र की गई है, जिन्होंने गत 5 वर्षों में किसी शिशु को जन्म दिया हो अथवा जिनकी शिशु की मृत्यु हुई हो, इन महिलाओं में उरांव (3583), गोंड़ (810), कंवर (604),  नगेसिया (270),  कोरवा (181), खरिया (145),  र्भूइंहार (131),  अगरिया (69), तथा अन्य जनजाति (113) महिलाएं सम्मिलित है। इन परिवारों से शिशु मृत्यु तथा उनकी प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक संबंधी सूचना एकत्र की गई है। आंकड़ों के संकलन के लिए तीन प्रकार की अनुसूची का प्रयोग किया गया है- प्रथम - ग्राम स्तर पर, द्वितीय- पारिवारिक स्तर पर, एवं तृतीय- व्यक्तिगत स्तर पर।

 

पारिवारिक स्तर की सुविधाए:

पारिवारिक स्तर की सुविधाओं से तात्पर्य उस भौतिक संरचना से है, जिसका व्यक्ति उपभोग करता है तथा जिसमें संरचना के अनुरुप वातावरण, आवश्यक सेवाएँ, सुविधाएँ, उपकरण, आदि उपलब्ध हो, जिससे एक परिवार का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक दृष्टि से विकसित पोषित हो सके। पारिवारिक सुविधाएँ मानवीय जीवन तथा शिशु परिवारों में सुविधाएँ अधिक है, वहाँ शिशु मत्र्यता दर कम पाई जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पारिवारिक सुविधाएँ कम पाई जाती है। प्रायः उपलब्ध भूमि के अनुसार मकान निर्माण होता है। पारिवारिक सुविधाओं के अन्तर्गत मकान का प्रकार, कमरों की संख्या, ईधन का स्रोत, पृथक रसाई घर, पेय जल का स्रोत, बिजली की उपलब्धता, गंदे पानी की निकासी, कूड़ा फेकने का स्थान, जानवर रखने की सुविधा, शौचालय की सुविधा, घर की स्वच्छता, अखबार की सुविधा प्रमुख है।

 

मकान का प्रकार:

पारिवारिक सुविधाओं के अंतर्गत मकान का प्रकार महत्वपूर्ण है। मकान का प्रकार केवल मानव के निवास योग्यता को प्रदर्शित करता है, बल्कि मानव के सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति का परिचायक होता है। सामान्यतः कच्चे एवं झोपड़ी-नुमा मकानों में शिशु मत्र्यता दर अधिक पाई जाती है। इसके विपरीत पक्के तथा अद्र्व-पक्के मकानों में शिशु मत्र्यता दर कम पाई जाती है।’’ पक्के घरों की तुलना में कच्चे घरों में मत्र्यता की संभावना अधिक होती है’’ (खान, 1993, जतराना, 2001) निम्न स्तर के वातावरण और अस्वच्छता की स्थिति में कच्चे घरों में जहाँ अधिक लोग निवास करते हैं, संक्रमण विशेषकर अतिसार और श्वसन संबंधी संक्रमण की अधिक संभावना रहती है (विमला कुमारी, 1991)

 

जशपुर जिले में सर्वेक्षित क्षेत्र में 98.8 प्रतिशत परिवार कच्चे मकानों में निवास करती है, जिनमें शिशु मत्र्यता दर 80.1 प्रति हजार है। जबकि सर्वाधिक शिशु मत्र्यता दर झोपड़ी में रहने वाले परिवार में पाई गई। झोपड़ी में रहने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 333.3 प्रति हजार है, जिनमें नवजात मत्र्यता दर 166.7 प्रति हजार है।

 

 

 

 

 

कच्चे मकानों में रहने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर बालकों में 89.8 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 69.1 प्रति हजार है। इसके विपरीत झोपड़ी में रहने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर बालकों में 400.0 प्रति हजार तथा शिशु बालिकाओं में 28.57 प्रति हजार है।

 

जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में सर्वाधिक शिशु मत्र्यता दर कोरवा जनजाति में 306.9 प्रति हजार है। कोरवा जनजाति में 89.1 प्रतिशत परिवार कच्चे मकानों में तथा 10.9 प्रतिशत् परिवार झोपड़ी में रहती है। कोरवा जनजाति में शिशु मत्र्यता दर झोपड़ी में रहने वाले परिवारों में 363.6 प्रति हजार और कच्चे मकानों में रहने वाले परिवारों में 300.0 प्रति हजार है। जिले में कच्चे मकान कोरवा के पश्चात् सर्वाधिक उराॅव जनजाति में 61.2 प्रतिशत् तथा सबसे कम अघरिया जनजाति में 1.2 प्रतिशत् है।

 

कमरों की संख्या:

कमरों की संख्या आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति का प्रमुख निर्धारक है। कमरों की संख्या के आधार पर किसी परिवार की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को जाना जा सकता है। यह परिवार की सम्पन्नता और विपिन्नता को इंगित करता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के अनुसार एक कमरे में दो व्यक्ति, दो कमरे में तीन व्यक्ति, तीन कमरे में पाँच व्यक्ति, चार कमरे में 7.5 व्यक्ति तथा पाँच कमरें में 18 व्यक्ति सामान्य रुप से रह सकते है। ’’जिन घरों में प्रति कमरा व्यक्ति का घनत्व कम होता है, शिशु मत्र्यता का खतरा कम होता है’’ (जतराना, 2001) ग्रामीण क्षेत्र में संयुक्त परिवारों में कमरों की संख्या कम होने का कारण शिशु मत्र्यता दर अधिक पाई जाती है।

 

 

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में एक कमरे वाले परिवार 0.6 प्रतिशत, दो कमरे वाले परिवार 4.2 प्रतिशत, तीन कमरे वाले परिवार 29.7 प्रतिशत तथा चार से अधिक कमरे वाले परिवार 65.4 प्रतिशत है। जिले में सर्वाधिक शिशु मत्र्यता दर एक कमरे वाले परिवारों में 636.4 प्रति हजार है, तथा 4 और उससे अधिक कमरे वाले परिवार में शिशु मत्र्यता दर सबसे कम 40.1 प्रति हजार है। तीन कमरे वाले परिवार की शिशु मत्र्यता दर (112.8 प्रति हजार) से दो कमरे वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर (495.2 प्रति हजार) अधिक है। जिले में कमरों की संख्या में वृद्वि के साथ शिशु मत्र्यता दर में कमी पाई गई है। जिले में एक कमरे वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर बालकों में 800.0 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 500.0 प्रति हजार है, इसके विपरीत 4 और उससे अधिक कमरे वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर बालकों में 45.0 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 34.6 प्रति हजार पाई गई है।

 

जशपुर जिले में उराॅव जनजाति में एक कमरे वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 600.0 प्रति हजार है। इसी प्रकार दो कमरे वाले परिवारों में 555.6 प्रति हजार, तीन कमरे वाले परिवार में 87.8 प्रति हजार तथा 4 और उससे अधिक कमरे वाले परिवार में शिशु मत्र्यता दर 43.3 प्रति हजार है। कोरवा में तीन कमरे वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 211.5 प्रति हजार है, जो एक कमरे वाले परिवार में बढ़कर 400.0 प्रति हजार है। जिले में सभी जनजातियों में कमरों की संख्या में वृद्धि के साथ शिशु मत्र्यता दर में कमी हुई है।

 

ईंधन का स्रोत:

ईंधन शिशु मत्र्यता दर को प्रत्यक्ष रुप से प्रभावित करती है। ईधन का संबंध वायु प्रदूषण से होता है। गैस सिलेण्डर का प्रयोग करने वाले परिवारों में वायु प्रदूषण कम होने से शिशु मत्र्यता दर कम होती है। इसके विपरीत जिन परिवारों में लकड़ी एवं कण्डा का प्रयोग ईधन के स्रोत के रुप में किया जाता है, उन परिवारों में अधिक प्रदूषण के कारण शिशु मत्र्यता दर भी अधिक होता है। ’’घरों में ईधन का स्रोत शिशु मत्र्यता दर को दो तरह से प्रभावित करता है। प्रथम, खाना बनाने की जगह यदि बच्चों को लम्बे समय तक रखें, जो हानिकारक धुएँ से श्वसन प्रणाली से संबंधित बीमारियाँ हो सकती है, और शिशु मत्र्यता की संभावना बढ़ जाती है। द्वितीय, ईधन का प्रकार परिवार की आर्थिक का सूचक है’’ (मित्रा और रदरफोर्ड, 1997)

 

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में ईधन के स्रोत के रुप में लकड़ी का प्रयोग 98.6 प्रतिशत परिवारों में किया गया है, किन्तु लकड़ी एवं कण्डा का प्रयोग 0.6 प्रतिशत्, मात्र कण्डा का प्रयोग 0.5 प्रतिशत तथा गैस का प्रयोग 0.3 प्रतिशत परिवार में किया गया है। जिले में सर्वाधिक शिशु मत्र्यता दर लकड़ी तथा कण्डे का प्रयोग करने वाले परिवारों में 222.2 प्रति हजार हैं, क्योंकि लकड़ी तथा कण्डे का प्रयोग ईधन के रुप में करने से निकलने वाली धुँआ सीधे शिशु के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इनमें नवजात मत्र्यता दर बालकों में 250.0 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 200.0 प्रति हजार है, किन्तु लकडी का प्रयोग से अप्रेक्षाकृत कम धुआं निकलती है।

 

पृथक रसोई घर:

पृथक रसोई घर आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति आर्थिक परिवारिक स्थिति तथा सम्पन्नता का सूचक है। जिन परिवारों में पृथक रसोई घर की व्यवस्था नहीं है। इन परिवारों में नवजात शिशु ईंधन के स्रोतों से निकलने वाली धुँओं से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। जबकि पृथक रसोइ्र्र घर होने पर नवजात शिशुु पर इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है।                   

 

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों मंें 627 प्रतिशत परिवारों में पृथक रसोई घर नहींे है, जिनमें शिशु मत्र्यता दर 114.4 प्रति हजार है। स्पष्ट है कि पृथक रसोई घर शिशु मत्र्यता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जिन परिवारों में पृथक रसोई घर है, उन परिवारों की शिशु मत्र्यता दर बालकों में 396 प्रति हजार तथा शिशु बालिकाओं में 113 प्रति हजार है। इसके विपरीत जिन परिवारों में पृथक रसोई घर नहीें है उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर बालको में 1195 प्रति हजार तथा बालिकाओं में 1033 प्रति हजार अधिक है। उल्लेखनीय है कि जिन परिावारों में पृथक रसोई घर उपलब्ध नहीें है, वहाँ प्रारभिक मत्र्यता दर 313 प्रति हजार, नवजात मत्र्यता दर 757 प्रति हजार तथा नवजातोत्तर मत्र्यता दर 55 प्रति हजार से अधिक है।

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में कोरवा जनजाति में 93.8 प्रतिशत परिवारों में पृथक रसोई घर नहीं है। इन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर सर्वाधिक 329.8 प्रति हजार है। इसके विपरित अघरिया जनजाति परिवार में 50 प्रतिशत परिवारों में पृथक रसोई घर नहीं है। जिनमें शिशु मत्र्यता दर 309.7 प्रति हजार है, खरिया जनजाति में 77.1 परिवारों में पृथक रसोई घर नहीं है। इस प्रकार गांेड़ जनजाति में 74.0 प्रतिशत् भुमिया में 67.5 प्रतिशत कंवर में 66.1 प्रतिशत नगेशिया में 64.6 प्रतिशत तथा उराॅव जनजाति में 56.9 प्रतिशत परिवारों में पृथक रसोई घर नहीें है। इनमें शिशु मत्र्यता दर गोंड़ में 68.3 प्रति हजार, भुमिया में 219.5 प्रति हजार, कंवर में 50.0 प्रति हजार, नगेसिया में 177.2 प्रति हजार तथा उराॅव में 99.0 प्रति हजार है।

 

पेय जल का स्रोत:

पेय जल का स्रोत शिशु मत्र्यता दर का सर्वाधिक प्रभावित करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश जनसंख्या पीने के लिए पानी कँुआ तथा हैण्डपम्प का प्रयोग करता है। ग्रामों में हैण्डपम्प तथा कँुआ सार्वजानिक होने के कारण इनकी साफ-सफाई नियमित रुप से नहीं होती है। जिस कारण हैण्डपम्प तथा कँुआ के आस-पास गंदगी फैली रहती है, जिससे संक्रमण रोग फैलने की संभावना बनी रहती है। ’’शुद्ध जल के उपयोग से सबसे अधिक अतिसार तत्पश्चात् तीव्र श्वसन ;।बनजम त्मेचपतंजवतल प्दमिबजपवदए ।त्प्द्ध अन्य बीमारियों को क्रमशः कम किया जा सकता है’’ (जैकोबी एवं वांग, 2004) सेकर स्टेन (1996) ने अपने अध्ययन में पाया कि निमोनिया और डायरिया जैसे संक्रमण रोगों के कारण शिशु एवं बाल मत्र्यता दर का स्तर अनेक दशों में ऊँचा रहता है। साफ पानी से डायरिया को रोकने में मदद मिलती है।

 

 

 

 

जशपुर जिले में सर्वाधिक 69.9 प्रतिशत परिवारों में पीने के पानी का स्रोत नल/हैण्डपम्प तथा  29.2 प्रतिशत परिवार कँुआ और 0.9 प्रतिशत परिवार अन्य स्रोत से पीने का पानी प्राप्त करते हैं। जिले में सर्वाधिक शिशु मत्र्यता दर (181.8 प्रति हजार) अन्य स्रोतों से पीने का पानी प्राप्त करने वाले परिवारों में हैं, जिनमें नवजातोŸार मत्र्यता दर 90.1 प्रति हजार तथा मत्र्यता दर 90.9 प्रति हजार है। उल्लेखनीय है कि पीने का पानी शिशु को नवजात तथा नवजातोŸार अवस्था में सर्वाधिक प्रभावित करती है। सबसे कम शिशु मत्र्यता दर (55.9 प्रति हजार) नल हैण्डपम्प का प्रयोग करने वाले परिवारों में है, जिनमें नवजात मत्र्यता दर 38.8 प्रति हजार तथा नवजातोŸार मत्र्यता दर 17.1 प्रति हजार है। कँुआ द्वारा पीने का पानी प्राप्त करने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 136.4 प्रति हजार है, जिनमें नवजात मत्र्यता दर 90.9 प्रति हजार तथा नवजातोŸार मत्र्यता दर 45.5 प्रति हजार है। उल्लेखनीय है, कि हैण्डपम्प, कँुआ तथा अन्य स्रोतों से पीने का पानी प्राप्त करने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर में क्रमषः वृद्वि हुई है।

 

जिले में कोरवा जनजाति में 68.8 प्रतिशत परिवार में कँुआ पेयजल का स्रोत है। किन्तु अन्य सभी जनजातियों में हैण्डपम्प जल पेयजल का प्रमुख स्रोत है। हैण्डपम्प द्वारा पीने का पानी का प्रयोग करने वाले जनजातीय परिवारों में खरिया में 60.4 प्रतिशत, भुमिया में 77.5 प्रतिशत, अधरिया में 90.9 प्रतिशत, नगेसिया में 73.1 प्रतिशत, उराॅव में 72.7 प्रतिशत, गोड़ में 64.5 प्रतिशत, कवंर में 70.8 प्रतिशत तथा अन्य जनजातियों में 94.4 प्रतिशत है। जिले में मत्र्यता दर हैण्डपम्प जल पेयजल का प्रमुख स्रोत है। हैण्डपम्प द्वारा पीने का पानी प्रयोग करने वाले जनजातीय परिवारों में खरिया मंें 60.4 प्रतिशत, गोंड़ मंे 64.5 प्रतिशत, कंवर में 70.8 प्रतिशत तथा अन्य जनजातियों में 94.4 प्रतिशत है। जिले में मत्र्यता दर हैण्डपम्प का प्रयोग करने वाले परिवारों से कुँआ का पानी पीने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर अधिक है। कुँआ द्वारा पीने का पानी का उपयोग करने वाले परिवारों में कोरवा (319.4 प्रति हजार), भूमिया (333.3 प्रति हजार), अघरिया (1000.0 प्रति हजार), नगेसिया (264.7 प्रति हजार), उरांव (102.6 प्रति हजार), गोंड़ (113.5) तथा जनजातियों में (1000.0 प्रति हजार) 100.0 प्रति हजार से अधिक है। जिले में कोरवा जनजाति में अन्य स्रोतों से पीने का पानी प्राप्त करने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 285.7 प्रति हजार है।

 

बिजली की उपलब्धता:

अनुसूचित जनजाति मकानों में प्रदŸ सुविधाओं में विद्युत की सुविधा का विशेष महत्व है, क्योंकि विद्युत का उपयोग व्यक्ति के भौतिक सुखो का परिचायक है। बिजली की उपलब्धता शिशु मत्र्यता दर को अप्रत्यक्ष प्रभावित करती है। चयनित ग्रामों के परिवारों में एकल Ÿाी कनेक्शन की व्यवस्था शासन द्वारा दी गई है। कुछ मकानों में वैध विद्युत कनेक्शन हैं, किन्तु इनकी संख्या कम है। अवैध रुप से विद्युत उपयोग करने वाले परिवारों की संख्या अधिक है। बिजली अनुपलब्धता वाले परिवारों में प्रकाश के लिए दीये एवं चिमनी का प्रयोग किया जाता है। प्रकाश के इन साधनों द्वारा निकलने वाली धुआँ शिशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जिससे शिशु मत्र्यता की संभावना बढ़ जाती है। घरों में बिजली की उपलब्धता होने से रेडियो तथा टेलीविजन द्वारा प्रसारित मातृत्व और शिशुु कल्याण कार्यक्रमों को देखकर शिशु मत्र्यता को कम किया जा सकता है।

 

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में 57.9 प्रतिशत परिवार में बिजली उपलब्ध है। बिजली की अनुपलब्धता वाले परिवारों में षिशु मत्र्यता दर 148.7 प्रति हजार है, जबकि की उपलब्धता वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 34.2 प्रति हजार है। जिले में बिजली की अनुपलब्धता वाले परिवारों में प्रारंभिक नवजात मत्र्यता दर 37.4 प्रति हजार, नवजात मत्र्यता दर 95.7 प्रति हजार तथा नवजातोŸार मत्र्यता दर  53.0 प्रति हजार है, जबकि इसके विपरीत बिजली की उपलब्धता वाले परिवारों में प्रारंभिक नवजात मत्र्यता दर मात्र 13.0 प्रति हजार, नवजात मत्र्यता दर 26.5 प्रति हजार तथा नवजातोŸार मत्र्यता दर 7.7 प्रति हजार है। जशपुर जिले में अघरिया में 68.2 प्रतिशत, नगेसिया में 56.1 प्रतिशत, उराॅव में 64.9 प्रतिशत, गोंड़ में 53.1 प्रतिशत, कंवर में 55.6 प्रतिशत तथा अन्य जनजातियों में 58.3 प्रतिशत परिवार में बिजली उपलब्ध है। जिले में नगेसिया जनजाति में बिजली उपलब्धता परिवार (26.3 प्रति हजार) से बिजली की अनुपलब्धता वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर (285.7 प्रति हजार) अधिक है। बिजली उपलब्ध परिवारों में शिशु मत्र्यता दर उराॅव में 36.4 प्रति हजार, गोंड़ में 18.7 प्रति हजार, कंवर में 12.0 प्रति हजार तथा अन्य जनजातियों में 66.7 प्रति हजार है। इसके विपरीत बिजली अनुपलब्धता वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर उराॅव में 129.0 प्रति हजार, गोंड़ में 97.3 प्रति हजार कंवर में 58.8 प्रति हजार तथा अन्य जनतातियों में 227.3 प्रति हजार है

 

गंदे पानी की निकासी की सुविधा:

खान-पान तथा दैनिक क्रियाओं के लिए जल की आवश्यकता होती है। उपयोग में लाए गए जल की निकासी की समुचित व्यवस्था आवश्यक होती है। जल की निकासी तथा नालियों की सफाई की उचित व्यवस्था होने से जलीय जीव, कीड़े-मकोड़े, मच्छर, गंदगी एवं वातारण प्रदूषित होने से अनेक प्रकार की बीमारी फैलने की संभावना होती है। जिससे शिशु मत्र्यता दर में वृद्वि की संभावनाएँ रहती है।

 

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में मात्र 11.0 प्रतिशत परिवारों में गंदे पानी की निकासी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जिनमें शिशु मत्र्यता दर 81.4 प्रति हजार है। इन परिवारों में नवजातोŸार मत्र्यता दर 48.9 प्रति हजार है। इसके विपरीत जिन परिवारों में गंदा पानी निकासी की व्यवस्था है, उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर (80.4 प्रति हजार) अपेक्षाकृत कम है। इन परिवारों में नवजातोŸार मत्र्यता दर 24.9 प्रति हजार है।

कूड़ा फेकने की सुविधा:

कूड़ा फेकने की सुविधा घर की स्वच्छता और घर के वातावरण के साथ-साथ शिशु मत्र्यता को प्रभावित करता है। अधिकांशतः ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में कूड़ा फेकने की सुविधा नहीं होती है। घर के आस-पास कूड़ा फैली रहती है, जिससे घर के आस-पास गंदगी तथा प्रदूषित वातारण बनी रहती है, जिससे विभिन्न कीटाणुओं और मच्छरों, मक्खी, आदि का जन्म होता है जिससे शिशु के स्वास्थ्य एवं शिशु मत्र्यता प्रभावित होता है।

 

तालिका 7, जशपुर जिला: कूड़ा फेकने का स्थान और शिशु मत्र्यता दर

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में 51.6 प्रतिशत परिवारों में कूड़ा फेकने की सुविधा उपलब्ध नहीं है, अर्थात कूड़ा घर के पास फेकते हैं। इन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 102.4 प्रति हजार है। इसके विपरीत जिन परिवारों में घर से दूर फेकते हैं, उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर (56.9 प्रति हजार) कम है। उल्लेखनीय है कि कूड़ा घर के पास फेकने वाले परिवारों में प्रारंभिक नवजात मत्र्यता दर 27.8 प्रति हजार तथा नवजात मत्र्यता दर 67.2 प्रति हजार है। जबकि घर से दूर कूड़ा फेकने वाले परिवारों में प्रारंभिक नवजात दर 17.5 प्रति हजार तथा नवजात मत्र्यता दर 40.8 प्रति हजार है। जिले में नवजातोŸार मत्र्यता दर घर से दूर कूड़ा फेकने वाले परिवारों (16.0 प्रति हजार) से घर के पास कूड़ा फेकने वाले परिवारों में (35.2 प्रति हजार) दो गुना है

 

जानवर रखने का स्थान:

जानवर रखने का स्थान शिशु मत्र्यता को प्रभावित करता है। जानवर रखने के स्थान में होने वाली गंदगी से वातारण और नवजात शिशु प्रत्यक्ष रुप से प्रभावित होता है। घर में जानवरों को रखने से होने वाली गंदगी से मक्खी तथा मच्छरों से फैलने वाली संक्रमण बीमारियों द्वारा शिशुओं की मृत्यु की संभावना रहती है। घर में जानवर रखने पर जानवारों से होेने वाली अनेक प्रकार की बीमारी शिशुओं में होने की संभावना रहती है, क्योंकि शिशुओं में बीमारी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, जिससे शिशु मृत्यु की संभावना रहती है।

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में 50.9 प्रतिशत परिवारों में जानवरों को घर के अन्दर रखा जाता है। जिन परिवारों में जानवरों को रखने की सुविधा घर से बाहर है, उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 48.3 प्रति हजार है। इसके विपरीत जिन परिवारों में जानवरों को घर के अन्दर रखा जाता है, उन परिवारों में शिशुु मत्र्यता दर (111.0 प्रति हजार) अधिक है। उल्लेखनीय है कि घर में जानवर रखने वाले परिवारों में बालक शिशु मत्र्यता दर (120.6 प्रति हजार) दो गुना है। इसी तरह से बाहर जानवर रखने वाले परिवारों में बालिका शिशु मत्र्यता दर (35.9 प्रति हजार) से घर में जानवर रखने वाले परिवारों में बालिका शिशुु मत्र्यता दर (100.6 प्रति हजार) तीन गुने है।

 

तालिका 8, जशपुर जिला: जानवर रखने का स्थान और शिशु मत्र्यता दर

  स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजातियों में कोरवा जनजाति परिवार में 73.4 प्रतिशत, खरिया में 62.5 प्रतिशत, भुमिया में 62.5 प्रतिशत, अघरिया में 90.9 प्रतिशत, नगेसिया में 50.0 प्रतिशत, गोंड़ में 62.6 प्रतिशत, कंवर में 50.3 प्रतिशत, तथा अन्य जनजातियों में 69.4 प्रतिशत, परिवारों में जानवरों को घर के अंदर रखा जाता है। किन्तु उरांव जनजाति में 55.0 प्रतिशत परिवार जानवरों को घर से बाहर रखते हैं। उरांव जनजाति में घर से बाहर जानवर रखने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर (51.0 प्रति हजार) से जानवरों को घर के अन्दर रखने वाले परिवारों में (86.0 प्रति हजार) अधिक है। जिले में जिन परिवारों में जानवरों को घर के अन्दर रखते हैं, उनमें सर्वाधिक शिशु मत्र्यता दर कोरवा जनजाति में 364.9 प्रति हजार है, जबकि सबसे कम कंवर जनजाति में 64.7 प्रति हजार है।

 

शौचालय की सुविधा:

सुविधायुक्त मकान में सबसे महत्वपूर्ण शौचालय की उपलब्धता होती है। शौचालय की सुविधा शिशु मत्र्यता को प्रभावित करती है। प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। वे खुले मैदान में तथा घर के आस-पास खाली पड़ी स्थानों में शौच के लिए जाते हैं। जिससे आस-पास का वातावरण दूषित होता है, साथ ही गंदगी के कारण मच्छर तथा मक्खियाँ पनपते हैं, और जब इनका प्रकोप बढ़ जाता है, तो इसका बुरा प्रभाव परिवार के सभी सदस्यों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ’’कई बीमारियाँ शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण होती है’’ (फराज, 1981) मच्छरों तथा मक्खियों का बुरा प्रभाव सबसे अधिक नवजात शिशु पर होता है जिससे उसकी मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।

 

तालिका 9, जशपुर जिला: शौचालय की सुविधा और शिशु मत्र्यता दर

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में 94.0 प्रतिशत परिवारों में शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं है। वे शौच के लिये खुले मैदानों में जाते हैं। जिन परिवारों में शौचालय की उचित व्यवस्था है, उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 23.5 प्रति हजार है तथा जिन परिवारों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है, उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर बढ़कर 84.1 प्रति हजार है। शौचालय की उचित व्यवस्था होने वाले परिवारों में नवजात मत्र्यता दर 11.3 प्रति हजार है। शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं होने वाले परिवारों में नवजात मत्र्यता दर अधिक (57.2 प्रति हजार) है। उल्लखेनीय है कि शौचालय की उचित व्यवस्था होने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर अपेक्षाकृत कम   है

 

घर की स्वच्छता:

घरों की स्वच्छता का शिशु के स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में घरों की स्थिति वर्षा काल में अत्यंत दायनीय होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घर मिट्टी के बने होने के कारण घरों की स्वच्छता अधिकतर निम्न होती है, जिसका प्रभाव शिशु के स्वास्थ्य पर होने से शिशु मृत्यु की संभावना बनी रहती है।

 

तालिका 10, जशपुर जिला: घर की स्वच्छता और शिशु मत्र्यता दर

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण

 

जशपुर जिले मेें अनुसूचित जनजाति परिवारों में घरांे की स्वच्छता 25.8 प्रतिशत परिवारों में निम्न, 69.6 प्रतिशत परिवारों में मध्यम तथा मात्र 4.6 प्रतिशत परिवारों में Ÿाम है। जिन परिवारों में घरो की स्वच्छता का स्तर निम्न है, उनमें शिशु मत्र्यता दर सर्वाधिक (220.1प्रति हजार) है। मध्यम स्वच्छता वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 35.1 प्रति हजार है। जिन परिवारों की स्वच्छता का स्तर निम्न है उन परिवारों में शिशु मत्र्यता दर (220.1प्रति हजार) मध्यम स्वच्छता वाले परिवारों से छह गुने है। इसी प्रकार जिले में मध्यम स्वच्छता वाले परिवार में प्रारंभिक नवजात मत्र्यता दर 12.5 प्रति हजार है। जबकि निम्न स्वच्छता वाले परिवारों में प्रारंभिक नवजात मत्र्यता दर 55.5 प्रति हजार, नवजात मत्र्यता दर 142.9 प्रति हजार तथा नवजातोŸार मत्र्यता दर 77.7 प्रति हजार है। उल्लेखनीय है कि जिले में अनुसूचित जनजातियों में Ÿाम स्वच्छता वाले परिवारों में शिशु मृत्यु नहीं हुई है।

 

जिले में अनुसूचित जनजाति परिवारों में कोरवा में सर्वाधिक 95.3 प्रतिशत परिवार में स्वच्छता का स्तर निम्न है। जिनमें शिशु मत्र्यता दर 302.1 प्रति हजार है। अघरिया जनजाति में परिवार की निम्न स्वच्छता वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर 333.3 प्रति हजार है। जिले में निम्न स्वच्छता वाले परिवारों में सबसे अधिक शिशु मत्र्यता दर नगेसिया में 424.2 प्रति हजार है। इसी प्रकार मध्यम स्तर की स्वच्छता वाले परिवारों में नगेसिया (22.7 प्रति हजार) तथा उराॅव जनजाति में शिशु मत्र्यता दर (25.9 प्रति हजार) अपेक्षाकृत कम है

अखबार की सुविधा:

अखबार की सुविधा परिवार की आर्थिक सम्पन्नता को प्रदर्शित करता है। समाचार पत्र संचार का सबसे सरल साधन है। अखबार शिशु मत्र्यता को अप्रत्यक्ष रुप से प्रभावित करता है। अखबरों में शिशु से संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारी दी जाती है। जिससे शिशु के स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। जिन परिवारों में अखबार की सुविधा उपलब्ध नहीं है, उन परिवारों में शिशु के स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी कम होती है, जिससे शिशु मत्र्यता की संभावना बढ़ जाती है।

 

तालिका 11, जशपुर जिला-: अखबार की सुविधा और शिशु मत्र्यता दर

 

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजातियों में 97.4 प्रतिशत परिवार में अखबार की सुविधा नहीं है, जिनमें शिशु मत्र्यता दर 82.6 प्रति हजार है। अखबार की सुविधा परिवार की शिक्षा की स्तर को इंगित करता है। अखबारों से विभिन्न प्रकार की जानकारियों के साथ गर्भावस्था के समय दिए जाने वाली सुविधाओं और शिशु से संबंधित विभिन्न जानकारियाँ मिलती है। यही कारण है कि  जिले में अनुसूचित जनजातियों में अखबार की सुविधा वाले परिवारों में शिशु की मृत्यु नहीं हुई है।

 

जशपुर जिले में अनुसूचित जनजातियों में कोरवा तथा अघरिया जनजाति परिवारों में अखबार की सुविधा का लाभ नहीं उठाते हैं। इन दोनों जनजातियों में शिशु मत्र्यता दर (कोरवा में 306.9 प्रति हजार तथा अघरिया में 129.0 प्रति हजार) अधिक है। जिले में उराॅव में 3.2 प्रतिशत तथा कंवर में 2.6 प्रतिशत परिवार अखबार की सुविधा का लाभ नहीं उठाने वाले परिवारों में शिशु मत्र्यता दर खरिया में 228.6 प्रति हजार, भुमिया में 163.6 प्रति हजार, नगेसिया में 130.1 प्रति हजार, गोंड 55.6 प्रति हजार तथा अन्य जनजातियों में 134.6 प्रति हजार है।

 

 

निष्कर्ष:

किसी क्षेत्र में षिषु मत्र्यता दर को सामान्यतया उच्च जीवन स्तर, चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धि, जन-सुविधाओं और वातारण, आदि का प्रतीक माना जाता है। अनुसूचित जनजातियों के पारम्परिक रुढ़िवादिता, सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं तथा जातिगत बंधनों के कारण इनमें पारिवारिक स्तर की सुविधाओं में कमी पाई गई है। मानव साभ्यता एंव संस्कृति से दूर वनाच्छादित एंव पिछड़े भागों में आवासित अनुसूचित जनजातियों के षिषु मत्र्यता दर को कम करने के लिए इनमें ग्राम स्तर की सुविधाओं में सुधार करना अत्यावष्यक है।

 

संदर्भसूची:

1.       Farz, M. A., 1981, Child Mortality and its Crrelates in Sweden, Ph.-D. Thesis, Unversity of Pennsulvania.

2.       Jatrana, S., 2001, Household Environmental Factors and their Effects on Infant mortality in Mewat Region of Harhaya State, India Demographic India. Vol. 30, No.1pp.31-47.

3.       Khan, M.E., 1988, Infant Mortality in Uttar Pradesh : A Micro Level Study, In A. K. & P. Visaria (eds.), Infant Mortality in India : Differentiads & Determinants Sage Publications, London, pp. 227-246.

4.       Mitra, S.W., 1997, Infant and Childhood Mortality in Bangladesh Levels and Differentiols, Australion National University, Canberra.

5.       Tomas, M., 1983, The Effect of Piped Water on Early Childhood Mortality in Urban Brazil, 1970-1976, World Bank Staff Working Papers, 594, The World Bank, Washington, D. C.

 

 

 

 

Received on 23.01.2019                Modified on 09.02.2019

Accepted on 16.02.2019            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):165-173.